निजामुद्दीन खान की कलम से...
नई दिल्ली /सदा ए वक्त /22 मई 2021
नोट ::(एक साल पहले की तहरीर)
===+=====+++++++++===========
आज 22 मई है । आज के ही दिन 1987 में मेरठ के समीप हाशिमपुरा - मलियाना में मुसलमानों का नरसंहार हुआ था । वो रमज़ान का जुमा अलविदा का दिन था। राजीव गांधी सरकार के दौर में जब बाबरी मस्जिद का ताला खोला गया था । जिसकी वजह से देश मे कई स्थानों पर सापप्रदायिक दंगे भड़क उठे थे उस वक़्त यू पी मे बहादुर सिंह की सरकार थी उ प्र के मेरठ जिला मे भी सांप्रदायिक दंगा भड़क गया था जिसमें भारी जानी और माली नुकसान हुआ था केन्द सरकार, उत्तर प्रदेश शासन व प्रशासन के इशारे पर मलियाना और हाशिम पुरा से PAC ने 42 मुसलमानो को एक ट्रक मे लेजाकार उनकी हत्या कर के नहर में फेंक दिया था । मलियाना हाशिम पुरा नर संहार की कहानी कुछ इस प्रकार है
फरवरी 1986 में केंद्र सरकार ने बाबरी मस्जिद के ताले खोलने का आदेश दिया, तो वेस्ट यूपी में माहौल गरमा गया था। इसके बाद 14 अप्रैल 1987 से मेरठ में धार्मिक उन्माद शुरू हुआ। कई लोगों की हत्या हुई, तो दुकानों और घरों को आग के हवाले कर दिया गया था। हत्या, आगजनी और लूट की वारदातें होने लगीं। इसके बाद भी मेरठ में दंगे की चिंगारी शांत नहीं हुई थी। मई का महीना आते आते कई बार शहर में कर्फ्य जैसे हालात हुए और कर्फ्यू लगाना भी पड़ा।
जब माहौल शांत नहीं हुआ और दंगाई लगातार वारदात करते रहे, तो शहर को सेना के हवाले कर दिया गया था। इसके साथ ही बलवाइयों को काबू करने के लिए 19 और 20 मई को पुलिस, पीएसी तथा सेना के जवानों ने सर्च अभियान चलाया था। हाशिमपुरा के अलावा शाहपीर गेट, गोला कुआं, इम्लियान सहित अन्य मोहल्लों में पहुंचकर सेना ने मकानों की तलाशी लीं। इस दौरान भारी मात्रा में हथियार और विस्फोटक सामग्री मिली थीं। या यूँ कह लीजिये सेना ने फ़र्ज़ी दिखाई थी सर्च अभियान के दौरान हजारों लोगों को पकड़ा गया और गिरफ्तार करके जेल भेज दिया था। इसी दौरान 22 मई की रात हाशिमपुरा हत्या कांड हुआ।
हापुड़ रोड पर गुलमर्ग सिनेमा के सामने मेरठ के हाशिमपुरा मोहल्ले में 22 मई 1987 को पुलिस, पीएसी और मिलिट्री ने सर्च अभियान चलाया था। आरोप है यहां रहने वाले किशोर, युवक और बुजुर्गों सहित कई सौ लोगों को ट्रकों में भरकर पुलिस लाइन ले जाया गया था। एक ट्रक को दिन छिपते ही पीएसी के जवान दिल्ली रोड पर मुरादनगर गंग नहर पर ले गए थे। उस ट्रक में करीब 50 लोग थे। वहां ट्रक से उतारकर लोगों को गोली मारने के बाद एक एक करके गंग नहर में फेंका गया। कुछ लोगों को ट्रक में ही गोलियां बरसाकर ट्रक को गाजियाबाद हिंडन नदी पर ले गए। उन्हें हिंडन नदी में फेंका गया था। इनमें से जुल्फिकार, बाबूदीन, मुजीबुर्रहमान, मोहम्मद उस्मान और नईम गोली लगने के बावजूद सकुशल बच गए थे। बाबूदीन ने ही गाजियाबाद के लिंक रोड थाने पहुंचकर रिपोर्ट दर्ज कराई थी, जिसके बाद हाशिमपुरा हत्या कांड पूरे देश में चर्चा का विषय बना।
उस समय गाज़ियाबाद के रहे पुलिस कप्तान विभुति नारायण राय अपने एक लेख में लिखते हैं "22 मई, 1987 को रात लगभग साढ़े दस बजे मुझे हाशिमपुरा नरसंहार की घटना की जानकारी हुई । शुरू में तो मुझे इस सुचना पर यक़ीन नही हुआ , पर जब कलक्टर और दूसरे अधिकारियों के साथ मैं घटना स्थल पर पंहुचा , तब जाकर मुझे यह एहसास हुआ की मैं धर्मनिरपेक्ष भारतीये गणराज्य के सबसे शर्मनाक हादसे का साक्षी बनने जा रहा हूँ । मैं उस समय गाज़ियाबाद का पुलिस कप्तान था और पीएसी ने मेरठ के हाशिमपुरा महल्ले से उठाकर कई दर्जन मुसलमानो को मेरे इलाके में लाकर मार दिया था ।
22 -23 मई 1987, की आधी रात दिल्ली - ग़ाज़ियाबाद सीमा पर मकनपुर गाँव से गुजरने वाली नहर की पटरी और किनारे पर उगे सरकंडों के बीच टार्च की रौशनी में खून से लथपथ धरती पर मृतको के बीच किसी जीवित को तलाशना और हर कदम उठाने से पहले यह सुनिश्चित करना की वह किसी जीवित या मृत शरीर पर न पड़े - मेरी स्म्रति पटल पर किसी हॉरर फ़िल्म की तरह अंकित है । मैंने पी ए सी के विरुद्ध एफ आई आर दर्ज़ कराई और करीब 28 वर्षो तक उन सारे प्रयासो का साक्षी रहा हूँ , जो भारतीय राज्य के विभिन्न अंग दोषियों को बचाने के लिए करते रहे हैं ।
हाशिमपुरा संबधी मुक़दमे ग़ाज़ियाबाद के लिंक रोड और मुरादनगर के लिंक रोड थानो में दर्ज़ थे । मगर कुछ घंटो में उसकी ताफ्तिशे राज्य के कांग्रेस के मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह के आदेश से सी आई डी को सौंप दी गयी । सी आई डी ने पहले दिन से ही दोषी पुलिसवालों को बचाने का काम शुरू कर दिया ।
कुल उन्नीस अभियुक्तों में सबसे वरिष्ट ओह्देदार एक सब इस्पेक्टर था । मैं कभी यह नही मान सकता की बिना वरिष्ट अधिकारियो की शह और अभयदान के मजबूत आशवासन के एक जूनियर अधिकारी बयालीस लोगो के कत्ल का फैसला कर सकता हैं ।
मामला सिर्फ पुलिस - प्रशासन और जाँच एजेंसी का ही नही था । हकीकत तो यह है राजनेताओ और मीडिया ने भी अपराधिक चुप्पी अख्तियार की । जिस समय यह हत्या कांड हुआ उस वक़्त लखनऊ और दिल्ली , दोनों जगह कांग्रेस की सरकार थी । मैं नही मानता उत्तर प्रदेश की किसी भी सरकार ने इस केस को गंभीरता से लिया ।"..
काण्ड के बाद 27 साल दस महीने का समय, हर तारीख पर अगली तारीख मिलने का दर्द। और उसके बाद यह दर्दनाक गलत अदालत का फैसला ...
अब इस मामले में दिल्ली हाई कोर्ट मे जुलाई में सुनवाई होना है । सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर केस को यूपी से दिल्ली ट्रांसफर कर दिया गया था । इस केस पर नए नये सिरे से काम करने और मजबूती से पैरवी करने की ज़रूरत है
आज इन शहीद मज़लूमो के लिये दुआ करे
निजामुद्दीन खान
संयोजक
SDPI दिल्ली प्रदेश