तारिक़ शमीम की कलम से।
सदा ए वक्त
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#सोचो अगर इतनी मौतें पिछले साल हो जाती तो क्या होता ?
#सारा ठीकरा मुसलमान के सर फोड़ दिया जाता कि जो मौते हो रही हैं सब मुसलमानों की वजह से हो रही हैं मुसलमानों का जीना हराम कर देते!
#पहले जमात को बदनाम किया फिर मुस्लिमों से नफरत की गयी सब्जी वालो से लेकर दुकानदारों तक को निशाना बनाया गया।
#पिछले साल कोरोना से मरने वाले मुसलमानो को दफनाने के खिलाफ गोबरभक्तों ने सुप्रीम कोर्ट में अर्ज़ी दी कि इन मुसलमानो को दफनाया ना जाए बल्कि जलाया जाए,*
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने ये अपील खारिज कर दी।
#उन्होने सारी चाले चल लीं तो मेरे रब ने एक साल बाद अपनी चाल दिखायी जिन्हें जलाया जाता है उन्हें आज दफनाया जा रहा है।
जब मेरे रब ने पहले जमात को कोर्ट से क्लीन चिट दिलाई फिर उन्हीं जमाती भाइयों के प्लाज्मा से उनके मरीजों को ठीक कराया, फिर जमातियों को अपने अपने देश और घर पहुंचाया और मुस्लिमों का वकार कायम रखा और फिर एक बरस बाद इन खबीसों से चुनाव कराया,कुम्भ मेला कराया और उनका सारा किया उवके गले डाल दिया।
*"अपने दुश्मनों की चालों से परेशान ना हुआ करो,*
*बेशक तुम्हारा रब सबसे बेहतरीन चाल चलने वाला है"*
*अल-क़ुरआन*